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क्रॉस पर ईसा मसीह के ये थे वो आखिरी सात वचन, पढ़ें...

 आज गुड फ्राइ-डे है. गुड फ्राइ-डे को होली फ्राइ-डे, ब्लैक फ्राइ-डे या ग्रेट फ्राइडे के अलग अलग नाम से भी जाना जाता है. इसी दिन प्रभु यीशु को क्रॉस पर लटका कर मारने का दंड दिया गया. लेकिन अपने हत्यारों पर क्रोध करने के बजाए यीशु ने उनके लिए प्रार्थना करते हुए कहा कि ' हे ईश्वर ! इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं'. जिस दिन ईसा मसीह को क्रॉस पर लटकाया गया था, उस दिन फ्राइ-डे यानी कि शुक्रवार था, तभी से उस दिन को गुड फ्राइडे मनाने कि परम्परा चली आ रही है. इसाई धर्म कि मान्यताओं के अनुसार,  माना जाता है कि उसके दो सप्ताह बाद इसके दो दिन बाद वह फिर से जीवित हो गए थे. आइए जानते हैं क्या थे ईसा मसीह के आखिरी शब्द... -आखिरी समय में यीशु ने काफी तह आवाज में पुकार रहे थे 'एली, एली, लमा शबक्तनी?; इसका मतलब है कि हे मेरे परमेश्‍वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया है? यीशु अपने पहले वचन में त्यागे जाने कि भावना को व्यक्त किया था. वचन के अनुसार, परमेश्‍वर ने यीशु के ऊपर संसार के समस्त पापों को डाल दिया था और इस कारण परमेश्‍वर को यीशु की ओर से जाना पड़ा था. -हे पिता, इन्...

जानें पूरी दुनिया में ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले गौतम बुद्ध के बारें में 10 रोचक बातें !

सिद्धार्थ गौतम को शाक्यमुनी के नाम से भी जाना जाता है, जिन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की थी और बाद में उन्हें बुद्ध नाम से जाना गया है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन गौतम बुद्ध का जन्मदिन मनाया जाता है, क्योंकि यह माना जाता है कि उनका जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था। आइए हम आपको गौतम बुद्ध से जुड़े ऐसे ही कुछ रोचक तथ्य बताते हैं, जो शायद ही आपने इससे पहले पढ़ा हो। 1. बुद्ध ने अपने अनुयायियों को तीन प्रमुख सिद्धांत सिखाये हैं। पहला घमंडी नहीं होना चाहिए, दूसरों से नफरत न करें, तीसरा अपने गुस्से का त्याग करें। 2. गौतम बुद्ध का जन्म एक महान राजा के घर हुआ था। लेकिन सच्चाई के मार्ग का पालन करने के लिए उन्होंने अपना घर तक छोड़ दिया था और वन में जाकर ईश्वर की तपस्या में लीन हो गए थे। इसके बाद उन्हें सिद्धार्थ के बजाय गौतम बुद्ध के नाम से जाना जाने लगा। 3. ऐसा कहा जाता है कि वह नियमित रूप से उपवास करते थे और सामान्यतः वह मीलों तक का पैदल ही सफर तय करते थे, जिससे वह चारों तरफ ज्ञान फैला सकें। 4. गौतम बुद्ध के जन्म के बाद एक संत ने यह भविष्यवाणी की थी कि वह आगे चलकर राजा या संत बनेंगे, जो पूरी दुनिया मे...

सूली पर चढ़ाए जाने के बाद जीसस क्राइस्ट बच गए, उनका मकबरा आज भी भारत में है !

  नई दिल्ली। जीसस क्राइस्ट, जिसे जीसस या जीसस क्राइस्ट भी कहा जाता है, ईसाई धर्म के प्रवक्ता थे। ईसाई उन्हें ईश्वर का पुत्र मानते हैं और उनके जीवन को बाइबिल के रूप में जानते और समझते हैं। ईसा मसीह का जीवन दुखों में बीता और उनका कहना है कि उनकी बढ़ती लोकप्रियता के कारण यहूदियों ने उन्हें साजिश के तहत मारने की कोशिश की। यहूदी डरते थे कि यीशु मसीह उनसे उनकी शक्ति छीन न ले, इसलिए उन्हें सूली पर चढ़ाया गया। आज ईसा मसीह को ईसाई धर्म के लोग पूरी दुनिया में जानते हैं और भारत में ऐसे कई लोग हैं जो उन पर विश्वास करते हैं और उनके जीवन से प्रेरणा लेते हैं। ऐसा कहा जाता है कि ईसा मसीह को यहूदियों ने अपने स्वार्थ के लिए सूली पर चढ़ाया था क्योंकि लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता उनके डर का मुख्य कारण थी। अपनी पुस्तक, द अननोन लाइफ ऑफ जीसस क्राइस्ट में, एक रूसी विद्वान निकोलस नोटोविच ने खुलासा किया कि यहूदियों द्वारा मारे जाने के बाद भी ईसा मसीह जीवित थे। वहीं दूसरी ओर लोगों का मानना ​​है कि ईसा मसीह मरे नहीं थे बल्कि सूली पर चढ़ाए जाने के बाद वे जीवित थे। 'द अननोन लाइफ ऑफ जीसस क्राइस्ट' किताब में ...

क्यों और कैसे पहनी जाती है कछुए की अंगूठी ?

कछुए  की  अंगूठी  को पहनते समय ध्यान रखें कि उसका चेहरा आपकी तरफ होना चाहिए। इससे धन  आपकी तरफ आकर्षित होता है।अगर बाहर की तरफ मुख होगा तो धन आने   के  बजाय   चला  जाएगा।  वहीं  अंगूठी  को सीधे हाथ की बीच वाली उंगली यानी मध्यमा उंगली में या फिर अंगूठे के पास वाली यानी  तर्जनी उंगली में पहनें। By:-culturalboys.

आखिर क्यों ढका जाता है सिर, पूजा करते समय ?

सभी धर्मों की स्त्रियां दुपट्टा या साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढंककर रखती हैं। सिर ढंककर रखना सम्मान सूचक भी माना जाता है। इसके वैज्ञानिक कारण भी है। सिर मनुष्य के अंगों में सबसे संवेदनशील स्थान होता है। ब्रह्मरंध्र सिर के बीचों-बीच स्थित होता है। मौसम का मामूली से परिवर्तन के दुष्प्रभाव ब्रह्मरंध्र के भाग से शरीर के अन्य अंगों में आतें हैं। इसके अलावा आकाशीय विद्युतीय तरंगे खुले सिर वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर क्रोध, सिर दर्द, आंखों में कमजोरी आदि रोगों को जन्म देती है। सिर के बालों में रोग फैलाने वाले कीटाणु आसानी से चिपक जाते हैं, क्योंकि बालों की चुंबकीय शक्ति उन्हें आकर्षित करती है। रोग फैलाने वाले यह कीटाणु बालों से शरीर के भीतर प्रवेश कर जाते हैं। जिससे व्यक्ति रोगी को रोगी बनाते हैं। इसी कारण सिर और बालों को जहां तक हो सके सिर और बालों को ढककर रखना हमारी परंपरा में शामिल है। साफ , पगड़ी और अन्य साधनों से सिर ढंकने पर कान भी ढंक जाते हैं। जिससे ठंडी और गर्म हवा कान के द्वारा शरीर में प्रवेश नहीं कर पाती। कई रोगों का इससे बचाव हो जाता है। सिर ढंकने से आज का जो सबसे गंभीर रोग...

चर्च की घंटी !

ईसाई परंपरा में एक चर्च की घंटी एक घंटी है जो एक चर्च में विभिन्न औपचारिक उद्देश्यों के लिए बजाई जाती है, और इमारत के बाहर सुनी जा सकती है। परंपरागत रूप से उनका उपयोग उपासकों को एक सांप्रदायिक सेवा के लिए चर्च में बुलाने के लिए और दैनिक ईसाई प्रार्थना के निश्चित समय की घोषणा करने के लिए किया जाता है, जिसे विहित घंटे कहा जाता है , जो संख्या सात है और संक्षिप्त रूप में निहित हैं । उन्हें विशेष अवसरों जैसे शादी , या अंतिम संस्कार पर भी गाया जाता हैसेवा। कुछ धार्मिक परंपराओं में उनका उपयोग चर्च सेवा के लिटुरजी में लोगों को यह बताने के लिए किया जाता है कि सेवा का एक विशेष हिस्सा पहुंच गया है। [१] ईसाई परंपरा में चर्च की घंटियों को बजाना भी राक्षसों को बाहर निकालने के लिए माना जाता है । [२] [३] [४] दुनिया भर में ईसाई चर्चों में इस्तेमाल की जाने वाली पारंपरिक यूरोपीय चर्च की घंटी (कटअवे ड्राइंग देखें) में एक कप के आकार का धातु गुंजयमान यंत्र होता है, जिसके अंदर एक पिवट वाला क्लैपर होता है, जिसके अंदर घंटी बजने पर पक्षों पर प्रहार होता है। इसे किसी चर्च या धार्मिक भवन की मीनार या घंटाघर के भीत...

क्यों रखी जाती है सिर पर शिखा या चोटी? जानिए इसके धार्मिक और वैज्ञानिक कारण !

Shikha Ka Mahatva: सनातन धर्म (Sanatan Dharma) में पैदा होने से लेकर मृत्यु तक कई सारे संस्कार और मान्यताएं होती हैं. जिनका अपने अपने समय पर महत्व रहता है. जब बच्चा पैदा होता है उसके बाद उसका मुंडन संस्कार (Mundan Rites) किया जाता है. उसे द्विज कहा जाता है इसका मतलब बच्चे का दूसरा जन्म है. इसके अलावा और भी संस्कार हैं जिनमें से एक है सिर पर शिखा या चोटी रखना. वैदिक संस्कृति (Vaidik Sanskriti ) में शिखा चोटी को कहा जाता है. चोटी रखने की प्रथा ऋषि मुनि के समय से चली आ रही है. जिसका पालन हिन्दू धर्म में अभी तक किया जा रहा है. चोटी रखने को लेकर विज्ञान (Science) ने भी अपना सकारात्मक पक्ष रखा है. आइए जानते हैं कि क्यों हिंदू धर्म में चोटी रखना अनिवार्य बताया गया है. क्या कारण है चोटी रखने का ! बच्चे का जब भी मुंडन किया जाता है या फिर किसी के घर में बुजुर्ग का निधन हो जाता है तो जो व्यक्ति अपना सिर मुंडवाता है, उस समय सिर पर थोड़े से बाल छोड़ दिए जाते हैं. जिसे चोटी या शिखा कहा जाता है. यह संस्कार यज्ञोपवित या जनेऊ के समय भी किया जाता है. सिर में जहां पर चोटी रखी जाती है वो जगह सहस्त्रा...

सुरमे का रहस्य क्या है ?

आज भी कई महिलाएं आंखों की खूबसूरती बढ़ाने के लिए सुरमा लगाती हैं। यह बिल्कुल काजल की तरह ही होता है, लेकिन इससे आंखों की एक अलग ही खूबसूरती देखने को मिलती है। हालांकि, ऐसा कहा जाता है कि मुस्लिम महिलाएं इसका उपयोग ज्यादा करती हैं। यही नहीं शादी-ब्याह जैसे फंक्शन में इसका उपयोग पुरुष भी करते हैं।   By:-culturalboys.

हम देवी देवताओ की पूजा करते ही क्यों हैं ?

पूजा  का प्रारंभ किसी खास देवी या देवता को खुश करने के लिए हुआ था। ताकी देवी-देवता की  पूजा  करके उनको खुश किया जा सके और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जा सके। मनुष्यों की मनोकामनाओं की पूर्ति, परेशानियों से निजात, शादी, मान-सम्मान में बढ़ोतरी, धन-संपत्ति तथा अन्य कामनाओं की पूर्ति हेतु देवी-देवताओं की  पूजा  की जाती है।   By:-culturalboys.

इन तीन कारणों से मंदिर में बजाते हैं घंटी, जानें इसका वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व !

माना जाता है कि पूजा करने वक्त घंटी जरूर बजानी चाहिए। इतना ही नहीं जब किसी मंदिर में देवी/देवता के दर्शन करने जाते हैं तो वहां मंदिर की घंटी जरूरी बचानी चाहिए। लेकिन क्या हम जानते हैं कि घंटी क्यों बजानी चाहिए? इसके पीछे क्या कारण हैं और इसका क्या महत्व है? आज हम आपको इसी चीज के बारे में बताने जा रहे हैं। आप किसी भी मंदिर पर जाएंगे तो पाएंगे कि वहां मंदिर के प्रवेश द्वार या प्रमुख प्रवेश द्वार पर घंटी टंगी होती है। यहां आने वाले पहले घंटी बजाते हैं इसके बाद आगे बढ़ते हैं। इसी प्रकार घर या मंदिर में पूजा करते वक्त लोग घंटी बजाते हैं। घंटी बजाने के पीछे वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों कारण हैं। घंटी बजाने के वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व - वैज्ञानिक कारण - घंटी जब बजाई जाती है तो हमारे जीवन पर उसका साइंटिफिक प्रभाव भी पड़ता है। रिपोर्ट्स के अनुसार, जब घंटी बजाई जाती है उससे आवाज के साथ तेज कंपन्न पैदा होता है। यह कंपन्न हमारे आसपास काफी दूर तक जाते हैं, जिसका फायदा यह होता है कि कई प्रकार के हानिकारक जीवणु नष्ट हो जाते हैं और हमारे आसपास वातावरण पवित्र हो जाता है। यही वजह है कि मंदिर व उसके आसपा...

मुस्लिम टोपी क्यों पहनते हैं !

टोपी पहनना हमारे लिए जरूरी नहीं है ओर ना ही कुरान में इसका जिक्र है। लेकिन मुसलमानों कि संस्कृति ओर पहचान है। बिना टोपी पहने भी एक इंसान अच्छा मुसलमान बन सकता है। एक वजह ये भी है कि मस्जिद या दरगाह में अदब के साथ दाखिल होने में सर ढका हुआ होना उस जगह का आदर माना जाता है।   By:-cuturalboys.

सिख धर्म में पगड़ी का क्या महत्व है ?

सिक्ख धर्म मे सिर को ढकने के लिए कुछ अनिवार्य दिशा निर्देश हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आप पगड़ी ही निश्चित रुप से पहने आप चाहें तो सामान्य तौर पर सिर को ढक सकते हैं किन्तु पगड़ी पहनना एक तरह से अपने आप को ज्यादा सुसज्जित करना है।   By:-culturalboys. 

इस्लाम में क्या है रमजान महीने का महत्व, रोजे के लिए किन बातों का रखा जाता है ख्याल !

  इस्लाम में रमजान का बहुत महत्व है। इस महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग एक महीने रोजे रखते हैं। इन दौरान दिन में न ही कुछ खाया जाता है और न ही कुछ पिया जाता है। रमजान के पवित्र महीने के बारे में कुरान में लिखा है कि अल्लाह ने पैगम्बर साहब को अपने दूत के रूप में चुना था। रमजान महीने के आखिरी दस दिन बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। क्योंकि इन दिनों में कुरान पूरी हुई थी। रमजान के कई महत्व हैं। रमजान के महीने में रोजा रखने के पीछे तर्क दिया जाता है कि इस दौरान व्यक्ति अपनी बुरी आदतों से दूर रहने के साथ-साथ खुद पर भी संयम रखता है। दिन में कुछ भी नहीं खाया जाता। लेकिन कहा जाता है कि खाने के अलावा व्यक्ति को खाने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। रोजे के दौरान अगर कोई व्यक्ति झूठ बोलता है, पीठ पीछे किसी की बुराई करता है, झूठी कसम खाता है, लालच करता है, या कोई गलत काम करता है तो उसका रोजा टूटा हुआ माना जाता है। रोजा रखने के बारे में कहा जाता है कि ये हमें सिखाता है कि हम अपने जिस्म के किसी भी हिस्से से कोई गलत काम ना करें। जैसे की ना गलत सुनें, ना ही अपने हाथों और पैरों से कुछ गलत काम करें। ...

नवरात्रि के नौवें दिन होती है मां सिद्धिदात्री की पूजा, पढ़ें मंत्र, आरती और कथा समेत अन्य जानकारियां !

चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि को मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। मान्यता है कि मां ने पृथ्वी को असुरों के अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए अवतार लिया था। कहा जाता है कि मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से व्यक्ति के सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं। साथ ही व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं भी पूरी हो जाती हैं। मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही भगवान शंकर का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसके चलते इन्हें अर्द्धनारीश्वर भी कहा जाता है। आइए जानते हैं मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि, मंत्र, आरती और कथा। मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि: आज नवरात्रि की नवमी तिथि है और आज के दिन मां को विदा किया जाता है। इस दिन सुबह सवेरे उठ जाना चाहिए। फिर स्नान करने के बाद चौकी लगानी चाहिए। इस पर मां सिद्धिदात्री की मूर्ति या प्रतिमा को स्थापित करें। इसके बाद मां को पुष्प अर्पित करें। मां को अनार का फल चढ़ाएं। फिर नैवेध अर्पित करें। मां को मिष्ठान, पंचामृत और घर में बनने वाले पकवान का भओग लगाया जाता है। इस दिन हवन भी किया जाता है। इस दिन कन्या पूजन भी किया जाता है।मां सिद्धिदात्री की कथा: मां सिद्धिदात्री को अणिमा, लघिमा, प्राप्ति,...

नवरात्रि के छठे दिन ऐसे करें मां कात्यायनी की पूजा, जानें मुहूर्त, शुभ रंग और भोग !

  चैत्र नवरात्रि का कल 7 अप्रैल 2022 को छठवां दिन है.  छठवें दिन मां दुर्गा के स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन मां कात्यायनी की विधिवत पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है. इनकी पूजा के प्रभाव से कुंडली में विवाह योग भी मजबूत होता है. मां कात्यायनी की भक्ति और ध्यान से मनुष्य को अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. मां कात्यायनी मां दुर्गा का छठा रूप है. मां ने किया था महिषासुर का वध. पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां कात्यायनी ने महिषासुर का वध किया था. राक्षस महिषासुर का वध करने के कारण इन्हें दानवों, असुरों और पापियों का नाश करने वाली देवी महिसासुरमर्दिनी कहा जाता है. आइए जानते हैं मां कात्यायनी की पूजा- विधि, मंत्र, भोग और आरती के बारे में. इस विधि से अगर मां की पूजा करेंगे तो मां अवश्य ही खुश हो जाएंगी. इसलिए पड़ा मां का नाम कात्यायनी.  देवी पुराण के अनुसार, कात्यायन ऋषि के घर उनकी बेटी के रुप में जन्म लेने के कारण ही मां दुर्गा के इस स्वरुप का नाम कात्यायनी पड़ा.  ऐसा कहा जाता है कि, जो भी भक्त नवरात्रि के छठे दिन...

नवरात्रि के पांचवें दिन होती है मां स्कंदमाता की पूजा, जानिए पूजा विधि, मंत्र, आरती और सब कुछ !

 चैत्र नवरात्रि के पंचम दिवस दुर्गा मां के स्कंदमाता रूप की पूजा- अर्चना की जाती है। शास्त्रों के अनुसार, इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। वहीं पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं देवी हैं स्कंदमाता। आपको बता दें कि स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है इनकी उपासना से भक्त की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। साथ ही भक्त को मोक्ष मिलता है। वहीं, मान्‍यता ये भी है कि इनकी पूजा करने से संतान योग की प्राप्‍ति होती है। जानिए नवरात्रि के पांचवे दिन की पूजा विधि, व्रत कथा, आरती, मंत्र, मुहूर्त… जानिए क्या है मां स्कंदमाता की पूजा विधि:  नवरात्रि का त्योहार सबसे पावन और पवित्र माना जाता है। इसलिए पंचम दिवस सबसे पहले स्‍नान करें और स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें। अब घर के मंदिर या पूजा स्‍थान में चौकी पर स्‍कंदमाता की तस्‍वीर या प्रतिमा स्‍थापित करें। इसके बाद गंगाजल से शुद्धिकरण करें फिर एक कलश में पानी लेकर उसमें कुछ सिक्‍के डालें और उसे चौकी पर रखें। अब पूजा का संकल्‍प लें। इसके बाद स्‍कंदमाता को रो...

नवरात्रि के चौथे दिन होती है मां कूष्मांडा देवी की उपासना, जानें पूजा विधि, मंत्र और भोग !

पूरे देश में नवरात्रि की धूम देखने को मिल रही है. नवरात्रि के नौ दिनों को बहुत ही पावन और शुभ माना जाता है. 5 अप्रैल, मंगलवार को नवरात्रि का चौथा दिन है. यह दिन मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप देवी कूष्मांडा को समर्पित होता है! अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा मां कुष्ठमांडा ने अपने उदर से ब्रह्मांड को उत्पन्न किया था.  माना जाता है जो भक्त मां के इस रूप की आराधना करते हैं, उन पर कभी किसी प्रकार का कष्ट नहीं आता. कुष्मांडा देवी को अष्टभुजा भी कहा जाता है. इनकी आठ भुजाएं हैं. अष्टभुजा देवी अपने हाथों में धनुष, बाण, कमल-पुष्प, कमंडल, जप माला, चक्र, गदा और अमृत से भरपूर कलश रखती हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां कुष्मांडा की पूजा करने से आयु, यश, बल और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है. मां कूष्‍मांडा को दही और हलवे का भोग लगाया जाता है. तो चलिए जानते हैं  मां स्वरूप, भोग, पूजा विधि, शुभ रंग व मंत्र... इसलिए कहा जाता है कुष्मांडा धर्म शास्त्रों के अनुसार, अपनी मंद मुस्कुराहट और अपने उदर से ब्रह्मांड को जन्म देने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से जाना जाता है. मां कूष्मांडा को तेज क...

नवरात्रि का तीसरा दिन आज, मां चंद्रघंटा की होगी पूजा, नोट कर लें पूजन विधि, मंत्र, आरती, महत्व और भोग !

 इस समय चैत्र नवरात्रि चल रही हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में मां के नौ रूपों की पूजा- अर्चना की जाती है। आज नवरात्रि का तीसरा दिन है। नवरात्रि के तीसरे दिन मां के तृतीय स्वरूप माता चंद्रघंटा की पूजा- अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता चंद्रघंटा को राक्षसों की वध करने वाला कहा जाता है। ऐसा माना जाता है मां ने अपने भक्तों के दुखों को दूर करने के लिए हाथों में त्रिशूल, तलवार और गदा रखा हुआ है। माता चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र बना हुआ है, जिस वजह से भक्त मां को चंद्रघंटा कहते हैं। आइए जानते हैं माता चंद्रघंटा की पूजा विधि, महत्व, मंत्र और कथा...   माता चंद्रघंटा की पूजा विधि...  नवरात्रि के तीसरे दिन विधि- विधान से मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप माता चंद्रघंटा की अराधना करनी चाहिए। मां की अराधना उं देवी चंद्रघंटायै नम: का जप करके की जाती है। माता चंद्रघंटा को सिंदूर, अक्षत, गंध, धूप, पुष्प अर्पित करें। आप मां को दूध से बनी हुई मिठाई का भोग भी लगा सकती हैं। नवरात्रि के हर दिन नियम से दुर्गा चालीस और दुर्गा आरती करें।   By:-culturalboy...

जानिए क्यों? बंगालियों के यहां दुर्गा पूजा में नॉनवेज खाने का है रिवाज !

बंगालियों के यहां दुर्गा पूजा में नॉनवेज खाने का रिवाज है। वे दुर्गापूजा के मौके पर नॉनवेज जरूर खाते हैं। लेकिन ऐसा क्यों?  हिंदुओं में दुर्गापूजा के व्रत में नमक को हाथ तक नहीं लगाया जाता है और अन्न भी नहीं खाया जाता है। यही नहीं नौ दिन तक वो सिर्फ सात्विक भोजन खाते हैं। साथ ही लहसुन प्याज की तरफ देखते तक नहीं है। ऐसे में आप समझ सकती हैं कि नॉनवेज के बारे में सोचना तक पाप समझा जाता है। लेकिन वहीं बंगालियों में दुर्गा पूजा के दिन नॉनवेज खाना जरूरी माना जाता है। उनके यहां नॉनवेज खाना एक रिवाज है, जिसे हर बंगाली फॉलो करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि क्यों हिंदु में शामिल बंगाली नॉनवेज खाते हैं। अगर नहीं जानते हैं तो आइए जानते हैं... बंगालियों में माता को मांस की बलि भी चढ़ाई जाती है फिर उसी को पकाकर खाया जाता है। पर सवाल वही जस का तस है कि बंगाली पूजा जैसे पावन अवसर पर नॉनवेज क्यों खाते हैं?  आस्था है कारण ! ये सारी कहानी आस्था से शुरू होती है और आस्था पर खत्म होती है। बंगालियों में भी कुछ खास समुदाय के लोग ही नॉनवेज खाते हैं जबकि कुछ ऐसा नहीं करते हैं। बंगालियों के जिस समुदा...

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव के बारे में जानें 5 खास बातें !

  नई दिल्ली, 18 नवंबर: भारत में कई धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं। भारत में माने जाने वाले अनेक धर्मों में से एक सिख धर्म है, जो दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा धर्म है। सिख धर्म के संस्थापक सिखों के पहले गुरु गुरु नानक देव जी थे। देशभर में 19 नवंबर 2021 को यानी कार्तिक पूर्णिमा को गुरु नानक देव जी की 552वीं जयंती मनाई जाएगी। जिसे गुरु नानक के प्रकाश उत्सव या गुरु नानक जयंती के नाम से भी जाना जाता है। पारंपरिक चंद्र कैलेंडर के मुताबिक गुरुपर्व की तारीख साल-दर-साल बदलती रहती है। हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार जहां दिवाली कार्तिक महीने के 15वें दिन पड़ती है, वहीं गुरु नानक जयंती उसके पंद्रह दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के शुभ अवसर पर पड़ती है। गुरु नानक देव अपने राजनीतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक विश्वासों के लिए जाने जाते हैं। गुरु नानक देव जी ने हमेशा 'सभी के लिए समानता' का संदेश दिया, चाहे उनका धर्म, जाति या लिंग कुछ भी हो। उनका कहना था कि ईश्वर शाश्वत सत्य है। 1. गुरु नानक का जन्म 15 अप्रैल, 1469 को हुआ था। उनकी जयंती कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। गुरु नानक जी के पिता का नाम मेहता...