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Showing posts from May, 2022

क्रॉस पर ईसा मसीह के ये थे वो आखिरी सात वचन, पढ़ें...

 आज गुड फ्राइ-डे है. गुड फ्राइ-डे को होली फ्राइ-डे, ब्लैक फ्राइ-डे या ग्रेट फ्राइडे के अलग अलग नाम से भी जाना जाता है. इसी दिन प्रभु यीशु को क्रॉस पर लटका कर मारने का दंड दिया गया. लेकिन अपने हत्यारों पर क्रोध करने के बजाए यीशु ने उनके लिए प्रार्थना करते हुए कहा कि ' हे ईश्वर ! इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं'. जिस दिन ईसा मसीह को क्रॉस पर लटकाया गया था, उस दिन फ्राइ-डे यानी कि शुक्रवार था, तभी से उस दिन को गुड फ्राइडे मनाने कि परम्परा चली आ रही है. इसाई धर्म कि मान्यताओं के अनुसार,  माना जाता है कि उसके दो सप्ताह बाद इसके दो दिन बाद वह फिर से जीवित हो गए थे. आइए जानते हैं क्या थे ईसा मसीह के आखिरी शब्द... -आखिरी समय में यीशु ने काफी तह आवाज में पुकार रहे थे 'एली, एली, लमा शबक्तनी?; इसका मतलब है कि हे मेरे परमेश्‍वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया है? यीशु अपने पहले वचन में त्यागे जाने कि भावना को व्यक्त किया था. वचन के अनुसार, परमेश्‍वर ने यीशु के ऊपर संसार के समस्त पापों को डाल दिया था और इस कारण परमेश्‍वर को यीशु की ओर से जाना पड़ा था. -हे पिता, इन्...

जानें पूरी दुनिया में ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले गौतम बुद्ध के बारें में 10 रोचक बातें !

सिद्धार्थ गौतम को शाक्यमुनी के नाम से भी जाना जाता है, जिन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की थी और बाद में उन्हें बुद्ध नाम से जाना गया है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन गौतम बुद्ध का जन्मदिन मनाया जाता है, क्योंकि यह माना जाता है कि उनका जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था। आइए हम आपको गौतम बुद्ध से जुड़े ऐसे ही कुछ रोचक तथ्य बताते हैं, जो शायद ही आपने इससे पहले पढ़ा हो। 1. बुद्ध ने अपने अनुयायियों को तीन प्रमुख सिद्धांत सिखाये हैं। पहला घमंडी नहीं होना चाहिए, दूसरों से नफरत न करें, तीसरा अपने गुस्से का त्याग करें। 2. गौतम बुद्ध का जन्म एक महान राजा के घर हुआ था। लेकिन सच्चाई के मार्ग का पालन करने के लिए उन्होंने अपना घर तक छोड़ दिया था और वन में जाकर ईश्वर की तपस्या में लीन हो गए थे। इसके बाद उन्हें सिद्धार्थ के बजाय गौतम बुद्ध के नाम से जाना जाने लगा। 3. ऐसा कहा जाता है कि वह नियमित रूप से उपवास करते थे और सामान्यतः वह मीलों तक का पैदल ही सफर तय करते थे, जिससे वह चारों तरफ ज्ञान फैला सकें। 4. गौतम बुद्ध के जन्म के बाद एक संत ने यह भविष्यवाणी की थी कि वह आगे चलकर राजा या संत बनेंगे, जो पूरी दुनिया मे...

सूली पर चढ़ाए जाने के बाद जीसस क्राइस्ट बच गए, उनका मकबरा आज भी भारत में है !

  नई दिल्ली। जीसस क्राइस्ट, जिसे जीसस या जीसस क्राइस्ट भी कहा जाता है, ईसाई धर्म के प्रवक्ता थे। ईसाई उन्हें ईश्वर का पुत्र मानते हैं और उनके जीवन को बाइबिल के रूप में जानते और समझते हैं। ईसा मसीह का जीवन दुखों में बीता और उनका कहना है कि उनकी बढ़ती लोकप्रियता के कारण यहूदियों ने उन्हें साजिश के तहत मारने की कोशिश की। यहूदी डरते थे कि यीशु मसीह उनसे उनकी शक्ति छीन न ले, इसलिए उन्हें सूली पर चढ़ाया गया। आज ईसा मसीह को ईसाई धर्म के लोग पूरी दुनिया में जानते हैं और भारत में ऐसे कई लोग हैं जो उन पर विश्वास करते हैं और उनके जीवन से प्रेरणा लेते हैं। ऐसा कहा जाता है कि ईसा मसीह को यहूदियों ने अपने स्वार्थ के लिए सूली पर चढ़ाया था क्योंकि लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता उनके डर का मुख्य कारण थी। अपनी पुस्तक, द अननोन लाइफ ऑफ जीसस क्राइस्ट में, एक रूसी विद्वान निकोलस नोटोविच ने खुलासा किया कि यहूदियों द्वारा मारे जाने के बाद भी ईसा मसीह जीवित थे। वहीं दूसरी ओर लोगों का मानना ​​है कि ईसा मसीह मरे नहीं थे बल्कि सूली पर चढ़ाए जाने के बाद वे जीवित थे। 'द अननोन लाइफ ऑफ जीसस क्राइस्ट' किताब में ...

क्यों और कैसे पहनी जाती है कछुए की अंगूठी ?

कछुए  की  अंगूठी  को पहनते समय ध्यान रखें कि उसका चेहरा आपकी तरफ होना चाहिए। इससे धन  आपकी तरफ आकर्षित होता है।अगर बाहर की तरफ मुख होगा तो धन आने   के  बजाय   चला  जाएगा।  वहीं  अंगूठी  को सीधे हाथ की बीच वाली उंगली यानी मध्यमा उंगली में या फिर अंगूठे के पास वाली यानी  तर्जनी उंगली में पहनें। By:-culturalboys.

क्यों पहनी जाती है कछुए की अंगूठी ?

कछुए  का सीधा संबंध मां लक्ष्मी से माना  जाता  है, क्योंकि माता की उत्पत्ति भी जल से ही हुई थी।  मान्यता है कि इसे धारण करने से जीवन में सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।इस  अंगूठी  को  पहनने  से पहले इसकी दिशा का विशेष ध्यान रखें।    By:-culturalboys.

आखिर क्यों ढका जाता है सिर, पूजा करते समय ?

सभी धर्मों की स्त्रियां दुपट्टा या साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढंककर रखती हैं। सिर ढंककर रखना सम्मान सूचक भी माना जाता है। इसके वैज्ञानिक कारण भी है। सिर मनुष्य के अंगों में सबसे संवेदनशील स्थान होता है। ब्रह्मरंध्र सिर के बीचों-बीच स्थित होता है। मौसम का मामूली से परिवर्तन के दुष्प्रभाव ब्रह्मरंध्र के भाग से शरीर के अन्य अंगों में आतें हैं। इसके अलावा आकाशीय विद्युतीय तरंगे खुले सिर वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर क्रोध, सिर दर्द, आंखों में कमजोरी आदि रोगों को जन्म देती है। सिर के बालों में रोग फैलाने वाले कीटाणु आसानी से चिपक जाते हैं, क्योंकि बालों की चुंबकीय शक्ति उन्हें आकर्षित करती है। रोग फैलाने वाले यह कीटाणु बालों से शरीर के भीतर प्रवेश कर जाते हैं। जिससे व्यक्ति रोगी को रोगी बनाते हैं। इसी कारण सिर और बालों को जहां तक हो सके सिर और बालों को ढककर रखना हमारी परंपरा में शामिल है। साफ , पगड़ी और अन्य साधनों से सिर ढंकने पर कान भी ढंक जाते हैं। जिससे ठंडी और गर्म हवा कान के द्वारा शरीर में प्रवेश नहीं कर पाती। कई रोगों का इससे बचाव हो जाता है। सिर ढंकने से आज का जो सबसे गंभीर रोग...

चर्च की घंटी !

ईसाई परंपरा में एक चर्च की घंटी एक घंटी है जो एक चर्च में विभिन्न औपचारिक उद्देश्यों के लिए बजाई जाती है, और इमारत के बाहर सुनी जा सकती है। परंपरागत रूप से उनका उपयोग उपासकों को एक सांप्रदायिक सेवा के लिए चर्च में बुलाने के लिए और दैनिक ईसाई प्रार्थना के निश्चित समय की घोषणा करने के लिए किया जाता है, जिसे विहित घंटे कहा जाता है , जो संख्या सात है और संक्षिप्त रूप में निहित हैं । उन्हें विशेष अवसरों जैसे शादी , या अंतिम संस्कार पर भी गाया जाता हैसेवा। कुछ धार्मिक परंपराओं में उनका उपयोग चर्च सेवा के लिटुरजी में लोगों को यह बताने के लिए किया जाता है कि सेवा का एक विशेष हिस्सा पहुंच गया है। [१] ईसाई परंपरा में चर्च की घंटियों को बजाना भी राक्षसों को बाहर निकालने के लिए माना जाता है । [२] [३] [४] दुनिया भर में ईसाई चर्चों में इस्तेमाल की जाने वाली पारंपरिक यूरोपीय चर्च की घंटी (कटअवे ड्राइंग देखें) में एक कप के आकार का धातु गुंजयमान यंत्र होता है, जिसके अंदर एक पिवट वाला क्लैपर होता है, जिसके अंदर घंटी बजने पर पक्षों पर प्रहार होता है। इसे किसी चर्च या धार्मिक भवन की मीनार या घंटाघर के भीत...

क्यों रखी जाती है सिर पर शिखा या चोटी? जानिए इसके धार्मिक और वैज्ञानिक कारण !

Shikha Ka Mahatva: सनातन धर्म (Sanatan Dharma) में पैदा होने से लेकर मृत्यु तक कई सारे संस्कार और मान्यताएं होती हैं. जिनका अपने अपने समय पर महत्व रहता है. जब बच्चा पैदा होता है उसके बाद उसका मुंडन संस्कार (Mundan Rites) किया जाता है. उसे द्विज कहा जाता है इसका मतलब बच्चे का दूसरा जन्म है. इसके अलावा और भी संस्कार हैं जिनमें से एक है सिर पर शिखा या चोटी रखना. वैदिक संस्कृति (Vaidik Sanskriti ) में शिखा चोटी को कहा जाता है. चोटी रखने की प्रथा ऋषि मुनि के समय से चली आ रही है. जिसका पालन हिन्दू धर्म में अभी तक किया जा रहा है. चोटी रखने को लेकर विज्ञान (Science) ने भी अपना सकारात्मक पक्ष रखा है. आइए जानते हैं कि क्यों हिंदू धर्म में चोटी रखना अनिवार्य बताया गया है. क्या कारण है चोटी रखने का ! बच्चे का जब भी मुंडन किया जाता है या फिर किसी के घर में बुजुर्ग का निधन हो जाता है तो जो व्यक्ति अपना सिर मुंडवाता है, उस समय सिर पर थोड़े से बाल छोड़ दिए जाते हैं. जिसे चोटी या शिखा कहा जाता है. यह संस्कार यज्ञोपवित या जनेऊ के समय भी किया जाता है. सिर में जहां पर चोटी रखी जाती है वो जगह सहस्त्रा...

आखिर क्यों प्रभु श्रीकृष्ण को "56" भोग लगाया जाता है?

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि प्रभु श्रीकृष्ण ( Krishna ) को "56" भोग का भोग लगाया जाता है परन्तु ऐसा होने के पीछे क्या कारण है? आखिर "56" भोग की इस परंपरा की शुरुआत कहाँ से हुई ? त्रेतायुग के समय की बात है। स्वर्ग के अधिपति राजा इंद्र जो कि सभी देवताओं के राजा भी माने जाते हैं। मनुष्य तथा देवताओं के पुजनीय है। सभी के द्वारा इंद्र की पूजा बड़े धूमधाम से की जाती थी। क्योंकि लोगों का मानना था कि इंद्र ही सबसे बड़े देवता हैं और यदि इंद्र क्रोधित हुए तो धरती पर अल्पवृष्टि या अतिवृष्टि हो जायेगी। इसी डर के कारण सभी मनुष्य इंद्र से बहुत डरते थे और उन्हें प्रसन्न रखने के लिए उनकी पूजा बड़े धूमधाम से की जाती थी। मनुष्यों के डर को इंद्र अपना सम्मान समझता था। एक बार दीपावली के अगले दिन सभी वृन्दावनवासी इंद्र की पूजा की तैयारियों में व्यस्त थे। प्रभु श्रीकृष्ण ( krishna ) अपनी गैयाओं के साथ जंगल की और प्रस्थान कर रहे थे कि तभी यशोदा मैयां ने उन्हें कहा लाला पहले इंद्र की पूजा कर लो उसके बाद गइया चराने जाना प्रभु श्रीकृष्ण ने अपनी मैयां से पूछा कि मैयां हम इंद्र की पूजा क्यों करते ह...

सुरमे का रहस्य क्या है ?

आज भी कई महिलाएं आंखों की खूबसूरती बढ़ाने के लिए सुरमा लगाती हैं। यह बिल्कुल काजल की तरह ही होता है, लेकिन इससे आंखों की एक अलग ही खूबसूरती देखने को मिलती है। हालांकि, ऐसा कहा जाता है कि मुस्लिम महिलाएं इसका उपयोग ज्यादा करती हैं। यही नहीं शादी-ब्याह जैसे फंक्शन में इसका उपयोग पुरुष भी करते हैं।   By:-culturalboys.

हम देवी देवताओ की पूजा करते ही क्यों हैं ?

पूजा  का प्रारंभ किसी खास देवी या देवता को खुश करने के लिए हुआ था। ताकी देवी-देवता की  पूजा  करके उनको खुश किया जा सके और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जा सके। मनुष्यों की मनोकामनाओं की पूर्ति, परेशानियों से निजात, शादी, मान-सम्मान में बढ़ोतरी, धन-संपत्ति तथा अन्य कामनाओं की पूर्ति हेतु देवी-देवताओं की  पूजा  की जाती है।   By:-culturalboys.

पूजा घर में कौन सा कलर करवाना चाहिए?

  इसी सकारात्मकता को बनाये रखने के लिए  पूजा घर  में उचित रंग का होना बहुत जरूरी है। वास्तु के अनुसार  पूजा घर  की दिवारों पर हल्के पीले रंग को सबसे शुभ माना जाता है। इसके अलावा आप लाल, गेरुआ या केसरिया रंग भी करवा सकते हैं। और फर्श के लिए सफेद रंग के पत्थर का चुनाव करना बेहतर होता है । By:-culturalboys.

इन तीन कारणों से मंदिर में बजाते हैं घंटी, जानें इसका वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व !

माना जाता है कि पूजा करने वक्त घंटी जरूर बजानी चाहिए। इतना ही नहीं जब किसी मंदिर में देवी/देवता के दर्शन करने जाते हैं तो वहां मंदिर की घंटी जरूरी बचानी चाहिए। लेकिन क्या हम जानते हैं कि घंटी क्यों बजानी चाहिए? इसके पीछे क्या कारण हैं और इसका क्या महत्व है? आज हम आपको इसी चीज के बारे में बताने जा रहे हैं। आप किसी भी मंदिर पर जाएंगे तो पाएंगे कि वहां मंदिर के प्रवेश द्वार या प्रमुख प्रवेश द्वार पर घंटी टंगी होती है। यहां आने वाले पहले घंटी बजाते हैं इसके बाद आगे बढ़ते हैं। इसी प्रकार घर या मंदिर में पूजा करते वक्त लोग घंटी बजाते हैं। घंटी बजाने के पीछे वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों कारण हैं। घंटी बजाने के वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व - वैज्ञानिक कारण - घंटी जब बजाई जाती है तो हमारे जीवन पर उसका साइंटिफिक प्रभाव भी पड़ता है। रिपोर्ट्स के अनुसार, जब घंटी बजाई जाती है उससे आवाज के साथ तेज कंपन्न पैदा होता है। यह कंपन्न हमारे आसपास काफी दूर तक जाते हैं, जिसका फायदा यह होता है कि कई प्रकार के हानिकारक जीवणु नष्ट हो जाते हैं और हमारे आसपास वातावरण पवित्र हो जाता है। यही वजह है कि मंदिर व उसके आसपा...

मुस्लिम टोपी क्यों पहनते हैं !

टोपी पहनना हमारे लिए जरूरी नहीं है ओर ना ही कुरान में इसका जिक्र है। लेकिन मुसलमानों कि संस्कृति ओर पहचान है। बिना टोपी पहने भी एक इंसान अच्छा मुसलमान बन सकता है। एक वजह ये भी है कि मस्जिद या दरगाह में अदब के साथ दाखिल होने में सर ढका हुआ होना उस जगह का आदर माना जाता है।   By:-cuturalboys.

सिख धर्म में पगड़ी का क्या महत्व है ?

सिक्ख धर्म मे सिर को ढकने के लिए कुछ अनिवार्य दिशा निर्देश हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आप पगड़ी ही निश्चित रुप से पहने आप चाहें तो सामान्य तौर पर सिर को ढक सकते हैं किन्तु पगड़ी पहनना एक तरह से अपने आप को ज्यादा सुसज्जित करना है।   By:-culturalboys.