जैसा कि आप सभी जानते हैं कि प्रभु श्रीकृष्ण (Krishna) को "56" भोग का भोग लगाया जाता है परन्तु ऐसा होने के पीछे क्या कारण है? आखिर "56" भोग की इस परंपरा की शुरुआत कहाँ से हुई ?
त्रेतायुग के समय की बात है। स्वर्ग के अधिपति राजा इंद्र जो कि सभी देवताओं के राजा भी माने जाते हैं। मनुष्य तथा देवताओं के पुजनीय है। सभी के द्वारा इंद्र की पूजा बड़े धूमधाम से की जाती थी। क्योंकि लोगों का मानना था कि इंद्र ही सबसे बड़े देवता हैं और यदि इंद्र क्रोधित हुए तो धरती पर अल्पवृष्टि या अतिवृष्टि हो जायेगी। इसी डर के कारण सभी मनुष्य इंद्र से बहुत डरते थे और उन्हें प्रसन्न रखने के लिए उनकी पूजा बड़े धूमधाम से की जाती थी। मनुष्यों के डर को इंद्र अपना सम्मान समझता था।एक बार दीपावली के अगले दिन सभी वृन्दावनवासी इंद्र की पूजा की तैयारियों में व्यस्त थे। प्रभु श्रीकृष्ण (krishna) अपनी गैयाओं के साथ जंगल की और प्रस्थान कर रहे थे कि तभी यशोदा मैयां ने उन्हें कहा लाला पहले इंद्र की पूजा कर लो उसके बाद गइया चराने जाना प्रभु श्रीकृष्ण ने अपनी मैयां से पूछा कि मैयां हम इंद्र की पूजा क्यों करते हैं। यशोदा मैयां ने कहा लाला इंद्र सभी देवताओं के राजा है, अगर वो हम पर दया-दृष्टि रखेंगे तो हमे अच्छी फसल तथा हमारे जानवरों को भोजन मिलता रहेगा, मैयां की बात सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा मैयां हमारी जरूरतों की पूर्ति तो गोवर्धन पर्वत करता है वही हमारी फसलों को पानी प्रदान करता है, पर्वत की तलहटी में पानी जमा होता है जो हमारे खेतों को सींचता है जिससे हमें अनाज मिलता है, और पर्वत पर उगे पेड़-पौधों से हमारे जानवरों का भी भरण-पोषण होता है, तो हम इंद्र की पूजा क्यों करते हैं हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। ऐसा कहने पर मैयां ने कहा लाला ऐसा नहीं कहते इससे इंद्र नाराज हो जाएंगे और पता नहीं कैसी-कैसी समस्याओं का हमें सामना करना पड़ेगा
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By:-culturalboys.
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