बकरीद का त्योहार भी इन्हीं दोनों बाप-बेटे (इब्राहीम-इस्माईल) की याद में ही मनाया जाता है. इस त्योहार का ज़िक्र पवित्र किताब कुरान में भी मौजूद है. यह त्योहार कुर्बानी और त्याग का त्योहार होता है. हज़रत इब्राहीम बहुत ही विद्धान व्यक्ति थे. अल्लाह ने उनका इम्तेहान लेने के लिए उनसे उनकी सबसे पसंदीदा चीज़ की कुर्बानी मांगी. हज़रत इब्राहीम को सबसे ज़्यादा प्यार अपने बेटे हज़रत इस्माईल से था.
उन्होंने फैसला किया कि वह अपने बेटे की ही कुर्बानी देंगे क्योंकि अल्लाह ने सबसे पसंदीदा की ही कुर्बानी मांगी थी. बताया जाता है कि हज़रत इब्राहीम ने अपने बेटे को भी अपने इस फैसले के बारे में बताया वह भी तैयार हो गए और दोनों लोग मिना नामक मैदान में गए और हज़रत इस्माईल ने बाप को आंखों पर पट्टी बांध कर कुर्बानी करने को कहा ताकि उनके दर्द को देख हज़रत इब्राहीम अपना फैसला न बदल लें और कुर्बानी अधूरी न रह जाए.
बताया जाता है कि हज़रत इब्राहीम ने अपने आंखों पर पट्टी बांध ली और अपने बेटे की गर्दन पर छुरी चला दी. इसी बीच अल्लाह ने फरिश्तों को भेज दिया और हज़रत इस्माईल की जगह एक दुम्बे (अरबी भेड़) को लिटा दिया. जब हज़रत इब्राहीम ने अपनी आंख खोली तो सामने दुम्बे को कटा हुआ देखा और बेटे हज़रत इस्माईल को जिंदा देखा. वो यह देख कर बेहद मायूस हो गए और सोचने लगे कि उनकी कुर्बानी अधूरी रह गई. वह अपनी पंसदीदा चीज़ को कुर्बान नहीं कर सके.
इसी बीच अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम को संदेश भेजा कि उनकी कुर्बानी कबूल कर ली गई है वह इम्तेहान में कामयाब हो गए हैं. अल्लाह ने अपने संदेश में हज़रत इब्राहीम से वादा भी किया कि वह इस कुर्बानी को कभी धूमिल नहीं होने देगें बल्कि कयामत (दुनिया का आखिरी दिन) तक इसकी याद मनायी जाएगी. इसी को लेकर अल्लाह ने कुरान में हुक्म (आदेश) भी दिया है कि हर मुसलमान इसकी याद कुर्बानी करके ज़रूर मनाए.
By:-culturalboys
Comments
Post a Comment